क्या मीडिया हिन्दू विरोधी है : मीडिया की निष्पक्षता का अवलोकन |
प्रस्तावना :
आज भारत में मीडिया की ख़बरों को यदि देखा जाए, तो लगता है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर बहुत अत्याचार होते हैं , तथा हिन्दू उन्हें बुरी तरह से प्रताड़ित करते हैं | कई अखबारों में यह खबर भी बार बार छपती है कि बीजेपी के आने के बाद मुसलमानों पर अत्याचार बढ़ गए हैं तथा यह पार्टी मुस्लिम विरोधी है एवं बाकी सब पार्टिया मुसलमानों की हितैषी हैं आदि | लेकिन इसी के उलट जब सोशल मीडिया पर देखा जाता है तो जनता बीजेपी के समर्थन में ज्यादा नज़र आती है | अब ऐसे में मीडिया और सोशल मीडिया दोनों ही बिलकुल विपरीत बाते करते नज़र आते हैं | दोनों में से कौन सही है कौन गलत यह जानने के लिए मैंने एक शोध किया जिसमे मैंने देश के ५ बड़े अख़बारों का अध्ययन किया | इस अध्ययन में ३ केसेस को मैंने लिया तथा उनका तुलनात्मक अध्ययन कर के देखा कि किस तरह से मीडिया ने इन्हें छापा है और उसके आधार पर मैंने यह पेपर लिखा है | अंत में जो नतीजे आये उससे यह साबित हो गया कि मीडिया कितनी हिन्दू विरोधी तथा पक्षपाती है |
क्रियाविधि :
इस शोध में ५ अख़बारों को लिया गया जिनके नाम हैं इंडियन एक्सप्रेस, द हिन्दू, हिंदुस्तान, जनसत्ता और टाइम्स ऑफ़ इंडिया | इसमें तीन अंग्रेजी तथा २ हिंदी अखबारों का मैंने अध्ययन किया है | इसी के साथ मैंने ३ केसेस को लिया है जो उत्तरप्रदेश में लगभग एक ही समय के अंतराल में घटित हुए हैं:
इनको चुनने के पीछे कारण यह था कि तीनो ही मामलो में हत्याकांड हुए हैं जिसमे एक समुदाय के व्यक्ति को दूसरे समुदाय के व्यक्तियों ने मारा है | इसलिए इस शोध में यह जानने का प्रयास किया गया कि किस केस को मीडिया ने कितनी जगह दी | इस तुलनात्मक अध्ययन को करने के लिए पांचो अख़बारों को लिया गया, तथा जिस तिथि को यह घटना घटी है उस दिन से लेकर १० दिनों तक हर अखबार में उस घटना के बारे में कितनी न्यूज़ छपी है , इसे गिना गया | इस तरह ५ अखबार , ३ खबरे और १० दिन अतः ५ * ३ * १० = १५० खबरों का अध्ययन इस शोध में किया गया तथा अंत में सभी अख़बारों की खबरों को जोड़ दिया गया एवं यह भी पता लगाया गया कि इनमे से कितनी खबरे पहले पृष्ठ पर थी और कितने अलग अलग पन्नो पर (जैसे पेज १ , पेज ५ , पेज १३ आदि ) खबर सारे दिनों में मिलाकर छापी गयी |
तीनो मामलो के विषय में संशिप्त जानकारी :
- अखलाख हत्याकांड दादरी ( 28 सितम्बर 2015)[1] : उत्तरप्रदेश के बिसारा गाँव में कुछ लोगों ने अखलाख नामक मुसलमान व्यक्ति की हत्या कर दी | हत्या का कारण उसके घर में गाय के मॉस का होना बताया गया , बाद में एक रिपोर्ट ने भी यह कहा के वो गौ मॉस ही था |[2] मगर जो भी हो एक व्यक्ति की हत्या को कभी भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता |
- संजू राठौर हत्याकांड, रामपुर (29 जुलाई 2015)[3] : उत्तरप्रदेश के ही रामपुर के कुपगाँव गाँव में एक गाय एक मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति के खेत में चली गयी | इस पर मुस्लिम समुदाय इतना नाराज हुआ कि मज्जिद से फतवा हुआ कि इन हिन्दुओ की गाय हमारे खेत खा रही हैं | इसके बाद गुस्से में आये लोगों ने १५ वर्षीय संजू राठौर को गोली मार दी और उसकी मौत हो गयी |
- गौरव हत्याकांड, अलीगढ (12 नवम्बर 2015)[4] : उत्तरप्रदेश के अलीगढ क्षेत्र में पठाखे चलाते समय कुछ चिंगारी मुस्लिम समुदाय के घर में चली गयी | इस बात पर उन्होंने बाहर आकर झगडा किया तथा गौरव को गोली मार दी | इसके बाद इलाके में तनाव बढ़ गया | गौरव के विषय में यह सवाल भी समाजवादी पार्टी से पूछा गया कि गौरव के मरने के बाद उसके परिवार को अखलाक से कम मुआवजा क्यों दिया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि गौरव हिन्दू था ?[5]
इन तीन मामलो को तुलनात्मक अध्ययन के लिए चुनने का एक कारण यह भी था कि यह सभी लगभग ५ महीनो के अन्दर एक ही प्रदेश में हुए मामले थे , तथा सभी में दो समुदाय शामिल थे | अखलाख केस के विषय में सभी जानते हैं क्योंकि यह प्रसिद्द केस है तथा इसमें नयनतारा सहगल, अशोक वाजपयी आदि ने अवार्ड वापसी और असहिष्णुता आदि वाले बयान दिए थे और बाकि विपक्ष ने भी राज्य सरकार की जगह केंद्र में बैठी सरकार पर चीखना शुरू कर दिया था | मगर बाकी के २ मामलों में अधिकतर विपक्ष और सिविल सोसाइटी शांत दिखाई दी | मगर ऐसे में मीडिया का फ़र्ज़ बनता था कि वो तटस्थ रहते हुए तीनो हत्याकांडो को बराबर जनता के सामने रखे |
शोध के परिणाम :
मीडिया ने किस तरह तीनो केसेस को छापा देखिये चार्ट में :
इसमें पहले स्थान पर न्यूज़ आइटम्स कितने छपे १० दिनों में ५ अखबारों में वह है | दूसरे स्थान पर कितने अलग अलग पन्ने सभी अखबारों ने प्रयोग किये | तीसरा प्रथम प्रष्ठ पर उस मामले की कितनी खबर छपी | १५० खबरों के अध्ययन से यह चार्ट सामने आया है | जिसमे साफ़ नज़र आता है कि अखलाख मामले को मीडिया ने कितना अधिक तूल दिया वहीँ गौरव और संजू राठौर कहीं तुलना में नज़र भी नहीं आते |
मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल :
इन तीन मामलों में साफ़ नज़र आता है कि किस तरह मीडिया ने अल्प्संखयक वाले मामले को ज्यादा तूल दिया तथा हिन्दुओं की हत्या का ढंग भी वैसा ही होने के बाद भी उन्हें उतना कवरेज नहीं दिया गया | साथ ही एक तथ्य और इस अध्ययन में सामने आया है कि कानून की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होने के बाद भी कई लोगों ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर इसका इल्जाम लगाया | कई सिविल सोसाइटी के लोग जैसे नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी , जे एन यु के कुछ लोग भी सिर्फ अखलाख के समय मुखर हुए तथा बाकी दो मामलो में शांत दिखे | ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी बनती थी तीनो मामलो को बराबरी से दिखाए मगर मीडिया ने पक्षपाती रवैया दिखाते हुए सिर्फ उस केस को बढाया जिसमे केंद्र में बैठी बीजेपी पर ज्यादा हमले हो सकें | यदि मीडिया को केंद्र सरकार से या बीजेपी से परेशानी है तो, जो भी गलत बीजेपी करे, तो मीडिया हज़ार बार उनके खिलाफ छापे | मगर यदि सिर्फ बीजेपी को हराने के लिए हिन्दुओं के साथ पक्षपात किया जाए तथा उनके साथ हो रहे अत्याचारों को दबाया जाए तो यह गलत है | इससे समाज में वैमस्यता और अधिक बढ़ेगी |
उपसंहार :
मीडिया को पूरी तरह निष्पक्ष होकर कार्य करना चाहिए तथा किसी भी घटना को घटना की तरह ही छापना चाहिए | जब मीडिया किसी व्यक्ति की मौत को मुसलमान की मौत या हिन्दू या दलित की मौत बताने लगता है तो वो अनकहे शब्दों में दूसरे समुदाय पर इल्जाम लगा रहा होता है कि उन्होंने यह किया है | इसी तरह जब मीडिया किसी हत्यारे को हिन्दू भीड़ या मुस्लिम भीड़ बताने लगता है तो दूसरा समुदाय अपने आप भड़कने लगता है | अब यदि मीडिया को लोगो को भड़काने के ही पैसे मिलते हैं तो अलग बात है मगर यदि ऐसा नहीं है तो मीडिया को हत्या को हत्या की तरह और अपराधी को अपराधी की तरह ही पेश करना चाहिए ना की उसे समुदाय और जाती का रंग देना चाहिए |
References
[1] http://www.thehindu.com/specials/in-depth/the-dadri-lynching-how-events-unfolded/article7719414.ece
[2] http://www.ndtv.com/india-news/meat-at-the-centre-of-dadri-lynching-case-is-beef-finds-new-forensic-test-1413998
[3] http://indiatoday.intoday.in/story/15-year-old-boy-dies-in-rampur-communal-clashes/1/455258.html
[4] http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/one-killed-in-clash-over-firecracker-in-aligarh/
[5] http://archive.news18.com/news/uttar-pradesh/aligarh-youths-kin-should-get-same-amount-that-of-dadri-bjp-838247.html