भगवान राम को गुंडा, देवी दुर्गा को वेश्या कहने वाले ज्ञानी लोगों से बचिए
बुद्धिजीवियों के अधकचरे ज्ञान का प्रदर्शन शुरू हो चुका है जहाँ राम को ‘असली गुंडा’ और रावण को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ बताया जाएगा।
ये कहा जाएगा कि कैसे रावण ने सीता को छुआ भी नहीं ब्ला-ब्ला-ब्ला जैसे कि उनका हरण उसने पार्क में साथ बैठकर दही-जलेबी खाने के लिए किया था। बाल्मीकि रामायण के उत्तरकाण्ड में रावण के ‘कामपिपासा’ का भी ज़िक्र है जब उसने एक स्त्री का (आज के शब्दों में) बलात्कार किया था, ये भी है कि अपनी ही बहन को विधवा बनाया था।
लेकिन ये सब क्यों पढ़ेगा हमारा ‘वानाबी बुद्धिजीवी’। उसको तो बस एक बात चाहिए जिससे एक, जिसने अपना हर काम मर्यादा से किया, वो बुरा दिखे, और एक, जिसने हर काम अपने हठ, दुराचार और महात्वाकांक्षा से किया वो अच्छा दिखे।
मतलब रावण का ना छूना सीता के ना कहने तक सीमित था? या फिर वही रामायण, या मानस, जो बुद्धिजीवी पढ़ नहीं पाते (और फ़ेसबुक पर ज्ञान के अथाह सागर वाले जेपेग इमेज से अपनी बात का आधार पाते हैं) वो ये कहता है कि सीता का तेज ऐसा था कि रावण उसको छू ही नहीं पाता। अब कहोगे कि ये तेज-वेज क्या होता है? वो तुम्हारे वश का नहीं है समझना।
पहले ये डिसाइड कर लो कि रामायण को इतिहास मानते हो या मायथोलॉजी। इतिहास मानते हो तो जो लिखा है उसको सही मानो। मायथोलॉजी मानते हो तो फिर इस पर वाद-विवाद कैसा। जो हुआ ही नहीं उसका सबूत क्यों माँगते हो? फिर तो जो है उसको कहानी की तरह पढ़ो और अपनी सीमित सोच के दायरे में रहकर समझो।
एक ग्रंथ में पात्रों की रचना होती है जिसे देखकर आने वाली पीढ़ी कुछ सीखे। उसमें नाम चाहे राम हो या रावण, सबकी अपनी विशेषता होती है। कोई संपूर्ण अच्छा या पूरी तरह बुरा नहीं होता। इसीलिए राम अपनी पत्नी को अग्नि परीक्षा के लिए पूछते हैं क्योंकि राम एक राजा थे और प्रजा के प्रश्नों के लिए उत्तरदायी थे। राम के राजधर्म ने उन्हें सीता से अग्निपरीक्षा लिवाई। तुम फ़ेमिनिस्ट बनोगे तो राम गलत दिखेंगे, तुम राजधर्म की दृष्टि से देखोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि राम को सीता पर कभी संदेह नहीं था लेकिन प्रजा को भी संदेह ना हो तो राम ने एक राजा के तौर पर अग्निपरीक्षा की व्यवस्था की। उसी फ़ेमिनिस्ट को ये नहीं दिखता कि एक नारी के सम्मान के लिए राम ने रावण से युद्ध किया।
रावण प्रकांड पंडित था पर उसका ज्ञान किसी की पत्नी के हरण में गया। राम ने हर यत्न किया कि युद्ध टले लेकिन रावण अपने अहम और सामर्थ्य के गुमान में युद्धातुर था और फिर वीरगति को प्राप्त हुआ।
पहले अपने ज्ञानचक्षु, अगर हैं तो, खोलो। पहले समझो कि क्या लिखा है और क्यों लिखा है। रावण को बाल्मीकि या तुलसीदास ने अचानक से बुरा नहीं बना दिया। नाम कुछ भी होता, उसके कर्मों से वो बुरा बना। आउट ऑफ़ कॉन्टैक्स्ट लिखने की कला अधकचरे और वानाबी इंटेलेक्चुअल्स की एक अदा है। इससे पता चलता है कि उनकी स्वयं की इच्छा क्या है। हलाँकि सवर्ण और दलित वाले संवाद में वो ये भूल जाते हैं कहना कि रावण ब्राह्मण था क्योंकि वहाँ इनका परपस सॉल्व नहीं होता।
ऐसे टुच्चे, अधकचरे और वानाबी इंटेलेक्चुअल्स से बच कर रहिए। थोड़ा इन ग्रंथों को पढ़िए, इन्हें समझिए कि कहाँ क्या बोला गया है। इन चिरकुटों से भारतीय समाज को बचाइए जो ‘ऑल्टरनेटिव रीडिंग’ के नाम पर देवी दुर्गा को ‘वेश्या’ तथा ‘महिषासुर’ को प्रतापी राजा बताते फिरते हैं। जब ऑल्टरनेटिव राइटिंग ही नहीं है, तो फिर रीडिंग कहाँ से हो रही है? किसी पुराण में तो ये होता कि दुर्गा या राम ने वो किया जो कम्युनिस्ट ‘विचारक’ फैला रहे हैं। नहीं है तो इसका साफ़ मतलब है कि आपका कोई अजेंडा है घृणा फैलाने का।
इसका मतलब है कि आप अपनी व्याख्या, आज के संदर्भ में, अपने ज्ञान के आधार पर कर रहे हैं और उसका आकलन हजारों साल पहले लिखे पुराणों और ग्रंथों से कर रहे हैं जब स्थिति अलग थी, जिसका इतिहास आप मानने को तैयार नहीं होते, और आपकी तरह के आधी बुद्धि वाले थोड़े कम थे।
ऐसे बुद्धिजीवियों को जब जब मौका मिले नंगा करते रहिए। इनका उद्देश्य ना तो फेमिनिज़्म है, ना ही बेहतर समाज की स्थापना है, ना ही दलितों को उनका हक़ दिलाना है। ये दुर्गा के शस्त्र उठाने को फ़ीमेल एम्पॉवरमेंट की तरह नहीं देखेंगे, वहाँ ये अचानक से वेश्या हो जाती है और एक स्त्री को वेश्या कहे जाने पर भी फेमिनिस्ट चुप हो जाता है क्योंकि ऑल्टरनेटिव रीडिंग देने वाला ज्ञानी व्यक्ति उसका साथी है।
ये मानकर चलते हैं कि हमें बुरी बात ही बतानी है निकाल कर वो भी अपने हिसाब से। इनका उद्देश्य सारे हिन्दू प्रतीकों की हत्या है क्योंकि हिन्दुओं ने भी रामायण की जगह फ़ेसबुक के जेपेग इमेज से राम की कहानी पढ़नी शुरू कर दी है। अपने समाज को, अपने धर्म को जानिए और ये ऑल्टरनेटिव रीडिंग वाली चोरों के गिरोह से बचिए चाहे आप किसी भी धर्म के हों।
The article has been reproduced from author’s blog with permission.